पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन का असर दुनिया पर पड़ रहा है। सबसे ज्यादा गरीब सबसे ज्यादा पीड़ित है। फिर भी अक्सर ग्रामीण भारतीय सतत विकास और योजनाओं को आजमाने की दिशा में अगुआई कर रहे हैं – यदि इसे व्यापक स्तर पर शुरू किया जाए, तो वास्तविक परिवर्तन पैदा कर सकता है।

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कोरोना महामारी के बाद कैसे कम किया जाए ग्रामीण भारत का दर्द

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान और महामारी के बाद, ग्रामीण संकट के स्रोतों को समझते हुए, ग्रामीण नागरिकों की पीड़ा को कम करने वाले उपायों की आवश्यकता है

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लॉकडाउन के दौरान किसानों और उपभोक्ताओं के बीच सेतु बनी किसान उत्पादक कंपनी

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परिवहन व्यवस्था नहीं होने से, एक ओर किसानों की उपज नहीं बिकी, वहीं उपभोक्ताओं को सब्जियां नहीं मिल रही थी। विशेष अनुमति प्राप्त करके और ऑर्डर के लिए एक मोबाइल ऐप की सहायता से एक नवाचार-परक फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी (एफपीसी) ने दोनों जरूरतों को पूरा किया है

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‘कोरोना‘ ग्रामीण भारत और उसकी अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करेगा

लॉकडाउन के प्रभाव से शहरों में कोई आर्थिक गतिविधियां न होने के कारण, जो प्रवासी अपने मूल गांवों में वापिस आए हैं और गाँवों में रहने वाले मजदूरों के लिए आगामी महीने तकलीफदेह होंगे

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डेरी किसान महिलाओं ने लॉकडाउन (बंदी) के दौरान सुनिश्चित किया दूध का सुरक्षित वितरण

कोरोना वायरस की दहशत के बीच, सुरक्षा उपाय अपनाकर, डेरी किसान महिलाएं, अपने सदस्य किसानों की आजीविका और आर्थिक हितों की रक्षा करते हुए, उपभोक्ताओं को दूध की आपूर्ति सुनिश्चित कर रही हैं।

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सालभर बीहू के इंतज़ार में सामूहिक बुनाई करने वाली मिशिंग महिलाएं अब अकेले कर रहीं बुनाई

आमतौर पर सामुदायिक केंद्र में, समूहों में पारम्परिक कपड़े बुनने वाली मीशिंग जनजाति की महिलाएं, अब घर पर ही अकेले बुनाई करती हैं, ताकि सोशल डिस्टैन्सिंग के माध्यम से कोरोना वायरस के प्रसार को रोका जा सके

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ओडिया आदिवासियों ने बच्चों के जन्म में अंतराल के लिए, त्याग दी परम्परा

बच्चों के एक के बाद एक, जल्दी-जल्दी जन्म के दुष्प्रभाव और कृषि और घरेलू कार्यों के तनाव, की दोहरी मार झेल रही ओडिशा की आदिवासी महिलाएं, गर्भ निरोधकों का उपयोग करने के लिए समुदाय के नियमों को तोड़ रही हैं

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अविकसित क्षेत्रों के विकास की बाधा – कुशल पेशेवरों का अभाव!

भारत के बेहद अविकसित मध्य और पूर्वी पहाड़ी आदिवासी क्षेत्रों में सेवाएँ प्रदान करने वाले अध्यापक और स्वास्थ्य-कर्मियों जैसे जमीनी-स्तर के कुशल पेशेवर बहुत कम हैं। यह एक ऐसी समस्या है, जिसका कोई आसान समाधान भी नहीं है।

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बुनना भविष्य को, मीटर दर मीटर !

असम के बोडोलैंड के गाँवों में, जहाँ हर बोडो घर में एक करघा है, श्यामा ब्रह्मा बुनाई से ठीक-ठाक आय अर्जित करती हैं, और इस लुप्त होते इस पारंपरिक कौशल को अपनी बेटियों को सौंपने की कोशिश कर रही हैं

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पैसा एवं पुरूषत्व: ग्रामीण परिवारों में बदलती लैंगिक भूमिकाएं

एक ऐसे समय में जब कृषि से जुड़े जीवन में तनाव और आय की अनिश्चितता बढ़ रही हैं, परिवार के लिए साधन जुटाने में ग्रामीण महिलाएं भी पुरुषों के बराबर हो रही हैं, किन्तु पितृसत्ता की पकड़ ढीली होने का नाम नहीं ले रही|